थरूर के बयान से दूरी बनाकर कांग्रेस अपने भीतर मौजूद दुविधा को उजागर कर रही है.
क्या यह कांग्रेस के लिए फिर से मणिशंकर अय्यर वाली स्थिति है? शशि थरूर के ‘हिंदू पाकिस्तान’ वाली टिप्पणी पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा यही चिंता सताने लगी है. थिरुवनंतपुरम के सांसद ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में यह बयान दिया था कि अगर भाजपा 2019 में दोबारा सत्ता में आई तो भारत ‘हिंदू पाकिस्तान’ बन जाएगा. भाजपा जिसका व्यवहार ऐसा है जैसे ‘हिंदू’ शब्द पर उसका एकाधिकार है और ‘पाकिस्तान’ शब्द से उसे एलर्जी है. भाजपा शशि थरूर की बात से आहत हो गई और थरूर और राहुल गांधी से माफी की मांग करने लगी.
यह भाजपा के लिए एक आदर्श रणनीति है. हर मुद्दे और बयान पर अपने उग्र प्रवक्ताओं को उत्तर कोरियाई शैली वाले समाचार चैनलों की हैशटैग पत्रकारिता के सहयोग से हिंसक और उग्र माहौल निर्मित कर देना. यह पहली बार नहीं था कि थरूर ने इस शब्दावली का प्रयोग किया हो. गौरतलब है कि अगस्त 2017 में, सीताराम येचुरी ने संसद के भीतर बिल्कुल यही शब्द भाजपा के बारे में कहे थे. लेकिन चुनावी वर्ष में उग्रता ज्यादा है और कांग्रेस के थरूर येचुरी की तुलना में बड़े राजनीतिक शिकार हैं.
बात यह है ही नहीं कि थरूर ने क्या सही और क्या गलत बोला. दुर्भाग्य यह है हमारी राजनीति इन दिनों कांग्रेस की प्रतिक्रिया से तय होती है. कांग्रेसी नेता रणदीप सुरजेवाला ने बिना समय गंवाए बयान दिया कि कांग्रेस के नेताओं को अपने शब्द ध्यान से चुनने चाहिए. लेकिन शशि थरूर इसी मायने में अलग हैं कि वे कांग्रेस के उन ऑफिस रूम वाली जमात के नेता नहीं हैं. वे पूर्व सांसद, केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के भीतर सबसे सधा, नपा-तुला बोलने वालों में से हैं. लेकिन कांग्रेस के बचाव की मुद्रा में आने से ऐसा प्रतीत होने लगा कि वह एकबार फिर परेशानी में आ गई हैं.
ठीक ऐसे ही 2014 चुनावों के पहले अय्यर ने अपने दंभी चरित्र के अनुरूप बयान देते हुए नरेन्द्र मोदी को कांग्रेस मुख्यालय के बाहर चाय की टपरी लगाने की सलाह दे डाली थी. जब एक तरफ कांग्रेस टूजी, कॉमनवेल्थ, कोलगेट घोटालों में घिरी थी तब मणिशंकर का बयान यह साबित करने के लिए काफी था कि पार्टी का आम जनता की नब्ज से संपर्क पूरी तरह से टूट चुका है. एक ही झटके में अय्यर ने मोदी को 2014 के लिए एक सशक्त मसाला दे दिया. मोदी कहीं भी खुद को चायवाला बताने से नहीं चूकते. इसी से मोदी के अभियान चाय पे चर्चा की शुरुआती हुई, जिसके जरिए वह भारत के दूर-दराज इलाकों में लोगों से जुड़ते चले गए.
पिछले नवंबर-दिसंबर में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर से अय्यर की बेकाबू जुबान ने मोदी को एक मौका दिया. हालांकि यह पूरी तरह से अय्यर की गलती नहीं थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान में दिए उनके बयान को तोड़मरोड़ कर राजनीतिक सुविधा से उसका इस्तेमाल किया, “जबतक मोदी सत्ता से हटाए नहीं जाते, भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते नहीं सुधर सकते.” मणिशंकर अय्यर मोदी को लोकतांत्रिक तरीकों से हटाने की बात कह रहे थे लेकिन मोदी ने इसे जनता के सामने इस तरह से पेश किया कि अय्यर दुश्मन देश की धरती पर पाकिस्तान के साथ मिलकर मोदी को हटाने की साजिश रच रहे हैं. यह बात आगे बढ़ी तो अय्यर ने मोदी को नीच आदमी कह दिया. एक बार फिर शब्दों के चयन में कांग्रेस चूक गई. इसका लाभ उठाकर भाजपा ने हर जगह कांग्रेस को जातिवादी पार्टी बताना शुरू किया. कांग्रेस इस नुकसान की भरपायी के लिए सिर्फ अय्यर को पार्टी से निलंबित कर सकती थी. उसने यही किया.
वैसे अय्यर कांग्रेसी खेमे में अकेले मुंहफट नेता नहीं हैं. उनके पहले दिग्विजय सिंह को ट्वीट और टीवी कैमरों का चस्का लगा था. यूपीए सरकार के कार्यकाल में हिंदू आतंकवाद उनका प्रिय जुमला हो गया था. इसके जरिए वे भाजपा को मौके देते रहते थे. कांग्रेस के भीतर कभी इतनी कूबत नहीं रही कि मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों को खारिज करते हुए यह संदेश स्पष्ट कर सके कि वह सारे हिंदुओं को आंतक के नज़रिए से नहीं देखती.
असल सवाल यह है कि कांग्रेस इस कदर बचाव की मुद्रा में क्यों है? क्योंकि उसे डर है कि कहीं थरूर की बयानबाजी हिंदू बहुसंख्यकों को पार्टी से अलग न कर दे. पाकिस्तान- एक भौगोलिक क्षेत्र के तौर पर और भावनात्मक तौर पर- भारतीयों के लिए घृणा का पर्यावाची है, विशेषकर 56 इंची ‘गौरवान्वित’ हिंदुओं के लिए. उन्हें मोदी की उग्र पाकिस्तान नीति सही लगती है. इसलिए जब थरूर भाजपा को हिंदू बहुसंख्यकों या हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की तुलना पाकिस्तान से करते हैं तो “हिंदू खतरे में है” गुट के लोग हर संभव उग्रता से इसके खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं.
भाजपा को शशि थरूर के बयान से हिंदू वोटबैंक का ध्रुवीकरण करने का अवसर मिल गया है. भाजपा द्वारा थरूर से माफी मांगने के लिए दबाव बनाना एक तस्वीर पेश करता है जैसे भाजपा प्रवक्ता भारत के हिंदुओं के इकलौते हितैषी और प्रतिनिधि हैं. थरूर का साथ न देकर कांग्रेस भाजपा की इस नीति को और मजबूत करने में अप्रत्यक्ष सहयोग करती है.
कांग्रेस की बेचैनी का एक कारण गुजरात और कर्नाटक में उसके द्वारा इस्तेमाल किया गया सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी है. कांग्रेस को डर है कि कहीं थरूर के बयान से हिंदू वोटर बिदक कर फिर से भाजपा के पाले में न चला जाए.
दूसरी तरफ, थरूर का बयान उन हिंदुओं तक पहुंचने का एक मौका हो सकता था जो समावेशी विचार के हैं. थरूर का तर्क है कि 80 प्रतिशत हिंदुओं में सिर्फ 31 प्रतिशत ने भाजपा को 2014 में वोट किया है, जिसका मतलब है ज्यादातर हिंदू भाजपा के विचारों के सहमत नहीं हैं. दिक्कत यह है कि कांग्रेस के साथ यह तर्क काम काम नहीं करता है. इसी साल सोनिया गांधी ने स्वीकार किया था कि कांग्रेस की छवि मुस्लिम समर्थक की बना दी गई है.
राहुल गांधी की मंदिर दर्शन की रणनीति का नतीजा यह भी हुआ कि पार्टी अल्पसंख्यकों के बीच संशय से देखी जानी लगी. इसी सप्ताह मुस्लिम बुद्धिजिवीयों से मुलाकात के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष कथित रूप से मुस्लिम वोट के संदर्भ में सशंकित थे. कांग्रेस को यह भी डर है कि अगर वह पूरी तरह भाजपा ब्रांड वाली हिंदू राजनीति करने लगी तो कहीं मुस्लिम वोट न खो बैठे.
इस प्रकरण से कांग्रेस के भीतर का विरोधाभास और उसकी अपनी दुविधाएं उजागर हो गई हैं.