कांग्रेस और जेडी(एस) अपने विधायकों को भाजपा के मकड़जाल से बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं.
कर्नाटक में एक दूसरे तरह का ‘एनिमल फार्म’ चल रहा है. भाजपा ने अपना जाल दूर तक बिछा दिया है और कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस-जेडी(एस) खेमे से काम भर के विधायकों को तोड़ लिए जाय. चूंकि विधायकों के टूटने की आशंका बनी हुई है लिहाजा यहां चूहे और बिल्ली के खेल के जैसा दृश्य उभर रहा है.
ठीक कुछ ऐसा ही कर्नाटक प्रागन्यवंथा जनता पार्टी के इकलौते विधायक आर शंकर के साथ हुआ. वह हावेरी जिला के रनेबेनूर सीट से जीते हैं. उन्होंने पहले भाजपा का समर्थन किया, फिर कांग्रेस के पाले में आ गए. दुबारा कुछ घंटों बाद, वह भाजपा के प्रकाश जावडेकर के साथ देखे गए लेकिन गुरुवार सुबह, वह कांग्रेस के साथ विधानसभा के बाहर धरना देते हुए देखे गए.
“मेरे ऊपर दोनों ही तरफ से बहुत दबाव है,” शंकर ने कुबूल किया. जबतक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट शुरू नहीं होता, यह स्पष्टता से नहीं कहा जा सकता कि वह किस तरफ रहेंगे.
कांग्रेस और जेडी(एस) को इस बात की उम्मीद है कि उनके विधायक भेड़ों के झुंड की तरह व्यवहार करेंगे. मतलब एक साथ रहेंगे. लेकिन भाजपा उन संभावित चेहरों को तलाश रही है जिन्हें वह अपने पाले में ला सकती है.
बंगलुरु में यह खतरा और गंभीर हो सकता है. कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों के अच्छे दिन जल्द आने वाले हैं. “कैश ऑन डिलेवरी” यहां एक चर्चित शब्द है.
बताया जा रहा है कि झुंड में दो ‘काली भेंड़’ हैं जिन्होंने कथित तौर पर भाजपा को ‘हां’ कहां है. इनके नाम हैं- आनंद सिंह और प्रताप गौड़ा पाटिल. योजना यह है कि 14 विधायकों को विश्वास मत से दूर या अनुपस्थित होने पर विवश कर दिया जाए जिससे बहुमत साबित करने का आंकड़ा 104 पर आ जाए. इस नंबर के साथ येदियुरप्पा सरकार इस संकट से पार पा लेगी.
आनंद सिंह और प्रताप पाटिल क्रमश बेल्लारी और रैचूर जिलों से आते हैं. ये जिले हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में पड़ते हैं. इन दोनों विधायकों पर संशय इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस क्षेत्र में रेड्डी और श्रीरामुलु का प्रभुत्व है. येदियुरप्पा के लिए बहुमत के जुगाड़ का जिम्मा बेल्लारी बंधुओं को दिया गया है. उनका सीवी देखकर आपको पता चल जाएगा कि 2008 में उन्होंने येदियुरप्पा की अल्पमत सरकार को बहुमत दिलाया था. इसे ‘ऑपरेशन कमल’ कहा गया था.
ऐसा उन्होंने जेडी(एस) के चार और कांग्रसे के तीन विधायकों को तोड़कर किया था. इन विधायकों ने अपनी सीट से इस्तीफा दिया था और दुबारा भाजपा की सीट पर चुनाव लड़ा था. दूसरे प्रयास में पांच विधायक जीत गए. इस बार, समय कम है और अपेक्षित संख्या ज्यादा है.
आनंद सिंह दल-बदलू नेता हैं. यह पूर्व में पर्यटन मंत्री रह चुके हैं. वह चुनाव के पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए और विजयनगर सीट से चुनाव भी जीत गए. दागदार खनन माफिया गल्ली जनार्दन रेड्डी की ही तरह इनकी भी रूचि मीडिया और होटल कारोबार में हैं. अवैध खनन के मामले में सीबीआई ने उन्हें 2013 और 2015 में दो बार गिरफ्तार भी किया है. वह एकमात्र कांग्रेस विधायक थे जिन्होंने गवर्नर को जमा की गई चिट्ठी पर हस्ताक्षर नहीं किया था क्योंकि उनसे पार्टी का संपर्क नहीं हो पा रहा था.
कांग्रस सांसद, डीके सुरेश, ने सिंह के बारे में बताया कि “वह नरेन्द्र मोदी के पाले में हैं.”
प्रताप पाटिल का मामला और भी दिलचस्प है. वह मास्की अनुसूचित जनजाति सीट से विधायक चुने गए हैं. उन्होंने एचडी कुमारस्वामी के समर्थन में हस्ताक्षर भी किया. सूत्र बताते हैं कि उन्होंने ओल्ड बंगलुरु एयरपोर्ट से गुरुवार की सुबह फ्लाइट लिया और किसी अज्ञात जगह पर चले गए. चूंकि इस हवाई अड्डे पर नियमित आवाजाही नहीं है, इससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि पाटिल प्राइवेट प्लेन से गए हैं. शक की सुई बेल्लारी बंधुओं पर है.
मजेदार है कि पाटिल पहले भाजपा के साथ थे और 2008 में मास्की की सीट से जीते थे. फिर वे कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने 2013 और 2018 में चुनाव जीता है. इस बार उनका मुकाबला काफी नज़दीकी रहा, उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को महज 213 वोटों से हराया. इसलिए आनंद सिंह की तरह वे पार्टी की विचारधारा के बहुत पक्के नहीं हैं.
भाजपा जल्दबाजी में है क्योंकि उसे लगता है सुप्रीम कोर्ट अगले 24 से 48 घंटों में विश्वास मत साबित करने का आदेश दे सकती है. भाजपा नेता बसवराज बोम्मई ने कहा कि यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट येदियुरप्पा द्वारा गवर्नर को दिए गए पत्रों को देखेगी. उन पत्रों में, कहीं भी 104 से ज्यादा संख्या की बात नहीं की गई है. यह काम बिगाड़ सकता है. वहीं दूसरे तरफ, कांग्रेस-जेडी(एस) खेमे ने राजभवन को 117 सदस्यों के समर्थन का हस्ताक्षर जमा कराया है.
अपने स्तर पर दिमागी खेल भी चल रहा है. भाजपा खेमा यह बता रहा है कि वे 8 कांग्रेसी और 2 जेडी(एस) विधायकों के संपर्क में हैं. इस खेमे में बताया जा रहा है कि लिंगायत विधायक खुश नहीं हैं क्योंकि इस गठबंधन का नेतृत्व कुमारस्वामी, वोक्कालिगा कर रहे हैं. कर्नाटक की राजनीति में वोक्कालिगा और लिंगायतों के बीच का संघर्ष करीब एक दशक पुराना है.
कांग्रेस और जेडी(एस) चाहती है कि येदियुरप्पा का मुख्यमंत्री कार्यकाल जल्द से जल्द खत्म हो. यही एक कारण है कि वे अपने विधायकों को राज्य के बाहर भेज रहे हैं. कांग्रेस के विधायकों को केरल के कोच्चि ले जाने की योजना है. केरल के पर्यटन विभाग के ट्विटर हैंडल पर विधायकों को केरल आने का न्यौता दिया था. जेडी(एस) के विधायकों को तेलंगाना भेजा जा सकता है. तेलंगाना सरकार के जेडी(एस) से मधुर रिश्ते होने की बात बताई जाती है.