क्या बेल्लारी रेड्डी बंधुओं को पुनर्जन्म का अवसर देगा?

दागदार रेड्डी बंधु और उनके करीबी कर्नाटक में भाजपा की तरफ से आठ सीटों पर दावेदारी पेश कर रहे हैं.

WrittenBy:टीएस सुधीर
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दिन की चुनावी यात्रा शुरू करने से पहले, गल्ली सोमशेखर रेड्डी बेल्लारी शहर के नए बने मंदिर पहुंचे हैं. उत्सव का माहौल है और मंदिर का रास्ता श्रद्धालुओं से भरा है. रेड्डी ने इस मंदिर के निर्माण में पैसा लगाया था. यही कारण है कि जब वे मंदिर से पूजा करके आ गए, मंदिर प्रशासन उन्हें सम्मानित कर रहा है.

मुझे इसके पहले 2009 में तिरुपती के तिरुमला मंदिर का इससे भी ज्यादा उत्सवधर्मी समारोह ध्यान आता है, जहां सोमशेखर रेड्डी के छोटे भाई गल्ली जनार्दन रेड्डी ने देवी-देवताओं के लिए 42 करोड़ का मुकुट भेंट किया था.

“न सिर्फ ये मंदिर बल्कि सोमशेखर ने लोगों के लिए इस इलाके में कई और विकास के काम किए हैं,” गोविंद बताते हैं, जो श्रद्धालुओं की भीड़ का हिस्सा हैं. वे बेल्लारी में ड्राइवर का काम करते हैं.

क्या आप रेड्डी बंधुओं की वापसी, उनके बाहुबल और बेल्लारी पर उनके शासन को लेकर चिंतित नहीं हैं? मैंने मंदिर के बाहर जमा लोगों से पूछा.

“हम बेल्लारी में जनसेवा के काम चाहते हैं,” वहां मौजूद सभी लोग समवेत स्वर में कहते हैं. तब मुझे एहसास होता है मैं रेड्डी के प्रभुत्व वाले इलाके में हूं जहां इस परिवार को गुलाबी चश्मे से देखा जाता है.

सात साल पहले जस्टिस संतोष हेगड़े की लोकायुक्त रिपोर्ट जिसमें गल्ली जनार्दन रेड्डी पर 35,000 करोड़ रूपये के खनन घोटाले का आरोप लगा था. रिपोर्ट में वर्णित अनियमितताओं को बेल्लारी गणराज्य कहकर संबोधित किया गया था. 2018 कर्नाटक चुनाव के साथ अब लगता है, रेड्डी बंधुओं की वापसी हो रही है.

सबसे ज्यादा हैरान करता है, उन्हें राजनीति में दोबारा से शामिल करने का तरीका. 31 मार्च को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि पार्टी का जनार्दन रेड्डी से कोई लेना-देना नहीं है. तीन सप्ताह बाद, भाजपा ने रेड्डी परिवार और उससे जुड़े सात सदस्यों को कर्नाटक विधानसभा चुनाव का टिकट दे दिया.

सोमशेखर रेड्डी बेल्लारी शहर से भाजपा उम्मीदवार हैं. जबकि दूसरे भाई करुणाकर रेड्डी हरपनहल्ली से चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि, श्रीरामुलु का चुनाव लड़ना तय था, रेड्डी ने सुरेश बाबू, सन्ना फकिरप्पा और एनवाई गोपालकृष्ण को भी टिकट दिलवाने में मदद की. उसके भतीजे लल्लेश रेड्डी को बेंगलुरु विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिला है.

श्रीरामुलु दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं, इसका मतलब है रेड्डी और उनके समर्थक भाजपा की आठ सीटों पर उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं. यह उस व्यक्ति के लिए उपलब्धि से कम नहीं है जिसे राजनीति में खारिज कर दिया गया था.

भाजपा को यू-टर्न क्यों लेना पड़ा? पार्टी को 2013 विधानसभा चुनावों में बेल्लारी की दयनीय स्थिति का भलीभांति अंदाजा है. पिछले पांच वर्षों में पार्टी मजबूत हुई है लेकिन महत्वपूर्ण है कि क्या बेल्लारी में भाजपा सशक्त हुई है. यह एक मृगतृष्णा है. दरअसल, इस पूरे क्षेत्र में श्रीरामुलु और जर्नादन रेड्डी का दबदबा है. अगर चुनाव के इतने करीब आकर पार्टी रेड्डी बंधुओं को झेलने को तैयार है तो इससे सिर्फ यही संदेश जाता है कि कर्नाटक में फिलहाल भाजपा की क्या स्थिति है.

श्रीरामुलु, रेड्डी परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं. भाजपा श्रीरामुलु को नाराज नहीं कर सकती क्योंकि श्रीरामुलु अच्छी खासी संख्या में वोट दिला सकते हैं. श्रीरामुलु के पास वाल्मीकि- नायक समुदाय का बड़ा वोट बैंक है. उनका प्रभुत्व सिर्फ बेल्लारी तक सीमित नहीं है बल्कि वे इससे सटे चार राज्यों में प्रभावशाली हैं. श्रीरामुलु को भाजपा कितना महत्वपूर्ण समझती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें बादामी से सिद्धारमैय्या के खिलाफ उतारा जा रहा था.

जब शाह ने रेड्डी को भाजपा के लिए अनुचित उम्मीदवार बताया था, तब भी रेड्डी ने बार्गेन नहीं किया. जनार्दन रेड्डी और श्रीरामुलु दोनों बयान पर नाराज हुए थे. उनके समर्थकों ने भी यह जाहिर होने दिया कि वे राजनीतिक विकल्प तलाश रहे हैं. श्रीरामुलु के राजनीतिक और जातीय समीकरणों को देखते हुए भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. उन्होंने इसकी झलक 2013 में ही दे दी थी, जब उनकी बीएसआर कांग्रेस ने बेल्लारी और चित्रदुर्गा में तीन सीट जीते थे. शाह दुबारा यह खतरा नहीं उठा सकते थे.

भाजपा ने भी अनुमान लगा लिया कि बेल्लारी का राजनीतिक मंच ऐसा है जहां हर उम्मीदवार दागदार है. रेड्डी बंधु बहुत लोकप्रिय हैं, कांग्रेस के पास भी अनिल लाड़ हैं, जिसके खिलाफ सीबीआई केस चल रहा है. अनिल बेल्लारी से सोमशेखर रेड्डी के प्रतिद्वंदी हैं. भाजपा से नागेन्द्र और आनंद सिंह (इसी साल वे भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए हैं) जैसे दूसरे खनन माफियाओं या राजनेताओं को भी अवैध खनन के मामलों में गिरफ्तार किया जा चुका है.

2008 में, जनार्दन रेड्डी ने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के चुनाव प्रचार में सहयोग किया था, इसके बाद ही दक्षिण भारत में पहली भाजपा सरकार बनी थी. एक दशक बाद आठ सीटें मिलना रेड्डी के राजनीतिक पुनर्जन्म का अवसर है. अगर रेड्डी के लोग सीटें जीतने में मदद करते हैं और दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी भाजपा के पक्ष में वोट दिलाने में मदद करते हैं, तो कर्नाटक अपने मूलनिवासी रेड्डी बंधुओं की वापसी करा सकता है.

पिछले सप्ताह, जब श्रीरामुलु चित्रदुर्गा के मोल्कालमुरु विधानसभा क्षेत्र से पर्चा भर रहे थे, जनार्दन रेड्डी उनके साथ था. साथ में बीएस येदियुरप्पा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी थे. कांग्रेस इन्हीं सब पर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस रेड्डी बंधुओं को ‘मोडी-फाइड’ रेड्डी बंधु कह रही है. सारी निगाहें अब इस बात पर होंगी कि सीबीआई रेड्डी बंधुओं का केस किस दिशा में आगे बढ़ाती है. सोमशेखर पहले ही इन मामलों को राजनीति से प्रेरित बताते रहे हैं जिसे यूपीए सरकार ने दर्ज करवाया था.

अपने राजनीति के शिखर पर, ऐसा कहा जाता है कि जर्नादन रेड्डी कथित तौर पर खुद को बेल्लारी का मुख्यमंत्री कहा करते थे. आज वे बेल्लारी की सीमा चित्रदुर्गा के गेस्ट हाउस में बैठे हैं. सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के मुताबिक वे अपने गृह जिले में प्रवेश नहीं कर सकते. यह कोई इत्तेफाक नहीं है कि जर्नादन रेड्डी खुद को राजा कृष्णदेवराय का अवतार बताते हैं.

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