सिद्धरमैय्या के लिंगायत दांव पर भाजपा कट्टर हिंदुत्व की चाल चल रही है. कर्नाटक की राजनीति में भी गुजरात की तर्ज पर धर्म की प्रधानता.
गुजरात में औरंगजेब और मुगलों को भुनाने के बाद अब कर्नाटक में भाजपा ने टीपू सुल्तान को बलि को बकरा बनाया है. कर्नाटक चुनाव से पांच महीने पहले दोनों- सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भाजपा- ने तय किया है कि कर्नाटक का चुनाव भी गुजरात की तरह ही लड़ा जाएगा. धर्म और जाति केन्द्रबिंदु रहेंगे और विकास की बात बेमानी होगी.
इसकी शुरुआत कुछ महीने पहले खुद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैय्या ने ही की थी. तब उन्हें लगा कि शायद भाजपा को जोर का झटका दे दिया है. उन्होंने लिंगायत समुदाय को हिंदू धर्म से अलग एक नए धर्म की मान्यता संबंधी प्रस्ताव का समर्थन किया था. कर्नाटक की आबादी में करीब 17 फीसदी आबादी वाला यह समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा को समर्थन देता रहा है. यहां यह जानना जरूरी है कि भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा राज्य में लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं और लिंगायतों पर उनकी जबरदस्त पकड़ है.
लिंगायत समुदाय कर्नाटक में ओबीसी वर्ग में सूचीबद्ध है और 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक बासवेश्वरा के अनुयायी माने जाते हैं. उन्हें बासावन्ना के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने हिंदू समाजिक व्यवस्था में व्याप्त असमानतओं के खिलाफ संघर्ष किया और वीराशैववाद नाम की एक अलग धार्मिक व्यवस्था की स्थापना की. इसका नतीजा था लिंगायत धर्म जो कि पारंपरिक हिंदू धर्म से कई अर्थों में भिन्न था. कांग्रेस पार्टी के प्रस्ताव पर समर्थन करने से समुदाय के बीच ही लोग विभाजित हो गए हैं.
सिद्धरमैय्या के इस दांव से भाजपा चिढ़ गई है जो किसी भी हालत में अपने वोटबैंक का नुकसान नहीं चाहती.
भले ही सिद्धरमैय्या वो न कर सकें जिसकी उन्होंने प्रस्तावना दी है, (हालांकि वे कर भी सकते हैं) लेकिन बहुत संभव है कि वे लिंगायतों के एक हिस्से को कांग्रेस के पक्ष में वोट करवा पाने में सफल हो जाएं.
एक अलग धर्म के रूप में मान्यता दिलाने के वायदे का आर्थिक पहलु भी है. लिंगायतों द्वारा चलाए जा रहे शिक्षण संस्थानों को धार्मिक अल्पसंख्यकों का दर्जा प्राप्त हो जाएगा, उन्हें आर्थिक रियायतें दी जाएंगी. राजनीतिक विश्लेषक सुगाता राजू इस ओर ध्यान आकृष्ट कराती हैं कि सिद्धरमैय्या की इस चाल से भाजपा की जातिगत राजनीति को जबरदस्त झटका लगा है. इसलिए भाजपा अब बेसब्री से धर्म के इर्द-गिर्द राजनीतिक विमर्श को केन्द्रित रखने पर ज़ोर दे रही है.
यदि कर्नाटक में भी हिंदुत्व का सिलेबस होगा तो भाजपा के पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ का आगमन तय है. कर्नाटक में भाजपा के परिवर्तन यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आकर्षण का केंद्र थे. यह उनकी ही देन थी कि भाजपा बनाम कांग्रेस का चुनावी संघर्ष भगवान राम बनाम टीपू सुलतान में तब्दील हो गया.
“अगर कर्नाटक ने कांग्रेस को एक बार में खारिज कर दिया तो कोई टीपू सुल्तान को पूजने नहीं आएगा,” योगी आदित्यनाथ ने कहा. उन्होंने आगे जोड़ा, “मैं निश्चिंत हूं कि कर्नाटक में भाजपा की वापसी हुई तो आप यह स्पष्ट संदेश देंगे कि भारत में हनुमान, संतों और अध्यात्मिक गुरूओं की पूजा होती है न कि टीपू सुल्तान की.”
योगी का हनुमान पर जोर इस विश्वास पर आधारित था कि वानर रूप में भगवान हनुमान का जन्म मौजूदा कर्नाटक में ही हुआ था. एक सिद्धांत के मुताबिक, हनुमान का जन्म हम्पी के अंजनी पहाड़ी पर हुआ था. दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान का जन्म गोकर्ण पहाड़ी के समीप एक गुफा में हुआ था. यह कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में स्थित है. अन्य कहानियों में हनुमान का जन्म स्थान महाराष्ट्र बताया जाता है.
शुक्रवार को एक टीवी शो में भाजपा नेता नरेन्द्र तनेजा ने तंज भरे लहजे में प्रश्न किया कि, क्या उस भूभाग पर टीपू का उत्सव मनाया जाना उचित है जहां हनुमान का जन्म हुआ है. टीपू को मुसलमान शासक के तौर पर पेश करने की नीयत है. टीपू का एक ऐसे शासक के रूप में छवि गढ़ने की कोशिश है जो अंग्रेजों के खिलाफ नहीं लड़ा. भाजपा की कोशिश है कि कांग्रेस को टीपू सुल्तान के नाम पर आयोजित उत्सव के प्रति रक्षात्मक होना पड़े. इससे यह दिखाने में आसानी होगी कि कांग्रेस मुसलमानों की हितैषी है और यह हिंदू वोटरों को एकजुट करने में फायदेमंद होगा. हालांकि जानकारों को इस बाबत संशय है कि उत्तर में सफल रहने वाला फॉर्मूला शायद ही दक्षिण में सफल साबित हो.
भाजपा की कर्नाटक ईकाई में उत्तर भारतीय नेतृत्व की इस रणनीति से सभी सहज नहीं हैं. यह इसलिए क्योंकि राज्य नेतृत्व जानता है कि तंज से परे, हर हिंदू टीपू सुल्तान को मुस्लिम धर्मांध के रूप में नहीं देखता बल्कि मैसूर साम्राज्य के वीर सुपुत्र के रूप में याद करता है.
लेकिन गुजरात की ही तरह सारा विमर्श इस ओर मोड़ दिया जा रहा है, कौन बड़ा या बेहतर हिंदू है. “मेरे नाम में क्या है- सिद्धरामा”, सिद्धरमैय्या ने ध्यान दिलाया. राम मेरे नाम में है. “हम लोग राम जयंती, हनुमान जयंती और टीपू जयंती भी मनाते हैं. हम सबकी जयंती मनाते हैं.”
सूखा और कृषि संकट से निबटने में कांग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है इसलिए भाजपा का पूरा ध्यान कांग्रेस के पांच साल के रिपोर्ट कार्ड पर होना चाहिए. लेकिन सिद्धरमैय्या की जाति के चाल पर भाजपा का धार्मिक पलटवार एक तरीके का सुर्खियां बटोरने का तरीका है.